सलमान तो खैर एक्टिंग के नाम पर ऐसा काला धब्बा है कि उसकी किसी फिल्म में निभाए गए किरदार का नाम याद ही नहीं रहता, हर किरदार में सल्लू भाई रहते हैं बाकी फिल्म में उस किरदार की कोई आइडेंटिटी नहीं रहती। ट्यूबलाइट में भी भाई उतने ही बचकाने थे जितने दबंग में, और दबंग में भी भाई का उतना ही जलवा था जितना वांटेड में।
आमिर भी एक्टिंग के नाम पर अपने ही बुने कोकून से बाहर नहीं आ पाते, पीके में उनके वही हाव भाव थे जो रंग दे बसंती में थे, और रंग दे बसंती में भी वो वैसे ही थे जैसा वो अंदाज़ अपना अपना में थे।
अक्षय भी हर मूवी में सिर्फ अक्षय कुमार है। यहां तक कि एक्टिंग के नाम पर मशहूर नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी भी हर फिल्म में एक जैसे ही चरसी टाइप एक्सप्रेशन लिए रहता है चाहे वो गैंग्स ऑफ वासेपुर हो, बाबूमोशाय बंदुकबाज हो या सैक्रेड गेम्स हो। उसका बोलने का लहजा भी एक ही रहता है चाहे वो शुद्ध मराठी गणेश गायतोंडे बना हो या धुर झारखंडी फैजल खान या उर्दू नफीस मंटो।
पर इरफान.... इरफान ऐसा कलाकार हैं जिनकी पर्दे पर कोई आइडेंटिटी नहीं। वो हासिल में सिर्फ रणविजय थे, उसमें इरफान का कोई अंश नहीं था। इरफान को आप पान सिंह तोमर में भी ढूंढ़ते रह जाएंगे पर आपको वो नहीं मिलेगा, आपको सिर्फ डाकू पान सिंह तोमर दिखेगा। यही था इरफान, पर्दे पर सिर्फ उसका किरदार जिंदा रहता था और इरफान खुद को उस किरदार के सामने ख़तम कर देता था। इस हद तक कि पर्दे पर इरफान की खुद की कोई हैसियत नहीं होती थी पर जिस किरदार को वो जी लेते थे वो किरदार अमर हो जाता था। आप वली खान को लंचबॉक्स के साजन फर्नांडिस के सामने खड़ा कर देंगे तो दोनों एक दूसरे को नहीं पहचान पाएंगे। ये साली ज़िन्दगी का अरुण कभी बिल्लू से बाल नहीं कटवाएगा। रोग का इस्पेक्टर उदय राठौर कभी नहीं समझ पाएगा कि हिंदी मीडियम का राज बत्रा इतना जिंदादिल कैसे है। करीब करीब सिंगल का खुशमिजाज योगी कितना भी कोशिश कर ले पर ब्लैकमेल के अंतर्मुखी देव कौशल में कॉन्फिडेंस पैदा नहीं कर पाएगा।
जहां तथाकथित सुपरस्टार्स एक्टिंग के नाम पर सिर्फ अपना ही कैरीकेचर निभाते रहते हैं वहीं इरफान, के के मेनन, मनोज बाजपेई, पंकज कपूर ये सब सुपरस्टार नहीं हैं, बल्कि उम्दा कलाकार हैं। ये सुपरस्टार बन भी नहीं सकते क्योंकि इनके अंदर का कलाकार हर फिल्म में इनको ख़तम कर देता है इनके किरदारों को ज़िंदा करने के लिए! ये अपने किरदारों को अपने पसीने से सींचते हैं, इसलिए फिल्मों में इनकी खुद की कोई पहचान नहीं होती।
इरफान तुम बहुत याद आते हो। जब भी पर्दे पर किसी अच्छी स्क्रिप्ट के साथ किसी स्टार की घटिया एक्टिंग को देखूंगा तुम याद आओगे। जब भी नवाज़ुद्दीन को एक ही लहजे में दो अलग बोली बोलने वाले किरदारों को निभाते देखूंगा तुम याद आओगे। जब भी कोई आमिर खान को एक्टिंग में मिस्टर परफेक्शनिस्ट बोलेगा तुम याद आओगे। जब भी कबीर सिंह में शाहिद की एक्टिंग की तारीफ किसी के मुंह से सुनूंगा और खोजने की कोशिश करूंगा कि हैदर और कबीर सिंह में शाहिद के एक्सप्रेशन और डायलॉग डिलीवरी में क्या अंतर था तब तुम फिर याद आओगे। यूं कि तुम होते तो कैसे करते, कैसे बोलते, कैसे निभाते... इसलिए तुम्हारी याद हमेशा आती रहेगी गुरु!
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